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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 79  शर्मिष्ठा ने अपना मन कड़ा कर लिया । अपने कर्मों की सजा वह अपने माता पिता और अपने दैत्य कुल को नहीं देना चाहती थी । एक उसके कारण पूरा दैत्य कुल नष्ट हो जाये, ऐसा कभी नहीं चाहती थी वह । इसके लिए उसे देवयानी के दंड को स्वीकार करना होगा । उसे आज से देवयानी की आजीवन दासी रहना होगा । बस, यही रास्ता बचा है उसके पास ।

यह सोचकर शर्मिष्ठा पलंग से उठी । पर यह क्या ? उससे उठा ही नहीं गया । "इतनी अशक्त हो गई है क्या वह" ? उसने सोचा । शर्मिष्ठा महान जिजीविषा वाली लड़की थी । साहस का साथ कभी नहीं छोड़ा था उसने । उसने एक बार पुन: प्रयास किया लेकिन वह खड़ी नहीं हो पाई । "मन के हारे हार है मन के जीते जीत" । उसका हृदय चकनाचूर हो चुका था । उसमें कोई शक्ति नहीं बची थी । वह असहाय होकर दासियों की ओर निहारने लगी । कितनी मासूम सी लग रही थीं वे दासियां । उसे देखकर वे कितनी विकल हो रही थीं । कोई पंखा झलने में लगी हुई थी तो कोई सिर दबा रही थी । कोई पैरों के तलवे सहला रही थी तो कोई गीले कपड़े से उसका बदन पोंछ रही थी । वे दासियां उसकी इतनी सेवा कर रही थीं जितनी तो वे भगवान की भी नहीं करती होंगी । क्या जीवन होता है दासियों का भी ?

इस पर पहले कभी उसका ध्यान नहीं गया था , पर आज अनायास ही उसका ध्यान जा रहा था । मनुष्य को जब आवश्यकता होती है तभी वह प्रयास आरंभ करता है, उससे पहले नहीं । अब तक उसे दासियों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं थी, इसलिए उसने कभी उन पर ध्यान ही नहीं दिया । लेकिन अब तो उसे दासी बनना होगा तो संभवत: इसीलिए उसका ध्यान उधर चला गया था । यह सोचकर शर्मिष्ठा के अधरों पर भयानक कष्ट में भी एक मधुर मुस्कान आ गई । उसका जुड़ाव उन दासियों से हो गया । अब वह भी उन जैसी हो होने वाली है । वह अब तक स्वयं को राजकुमारी समझती आई थी , इसमें समझने की क्या जरूरत थी, वह वास्तव में राजकुमारी ही थी , पर आज वह स्वयं को उन दासियों में से ही एक दासी समझ रही थी । बस फर्क इतना सा था कि ये दासियां किसी की भी सेवा के लिए नियुक्त की जा सकती थीं किन्तु वह केवल देवयानी की ही दासी बनी रहेगी ।

वह अपने भावी जीवन के बारे में सोचने लगी । देवयानी का विवाह किसी ऋषि कुमार या ब्राह्मण कुमार से होगा । देवयानी भृगु वंश में जन्मी है और शुक्राचार्य जैसे तेजस्वी ऋषि उसके पिता हैं तो उसका विवाह भी किसी उच्च कुल में ही होगा । क्या पता उसे शुक्राचार्य से भी अधिक तेजस्वी कोई पति मिल जाये ? शुक्राचार्य उसका विवाह किसी ऐसे ही श्रेष्ठ व्यक्ति से करेंगे । वह भी उस के पति के चरणों में बैठकर कुछ ज्ञान की बातें सीख लेगी तो उसका जीवन भी संवर जायेगा । यह तो अच्छा हुआ कि देवयानी ब्राह्मण वर्ण की है । यदि वह क्षत्रिय होती तो ? तो क्या , उसे किसी महाराज की भी सेवा करनी पड़ती । और राजे महाराजे दासियों का क्या उपयोग करते हैं , उसने अपनी मां के मुंह से सुना था एक बार । मां अपने पिता श्री की प्रशंसा कर के कह रही थी कि मेरे पिता श्री "एक पत्नीव्रती" हैं । जब एक पत्नी को यह विश्वास हो कि उसका पति केवल उससे ही प्रेम करता है तो वह इस दुनिया की सबसे सौभाग्यशाली पत्नी होती है । उसे अपने पिता श्री पर गर्व होने लगा ।

वह अभी कुछ और भी सोचती , इससे पहले उसकी सखियां विजया , सुनयना , सुमंगला , सुवर्णा वगैरह आ गईं । उन्हें भी देवयानी के द्वारा सुनाये गये दंड की सूचना मिल गई थी । शर्मिष्ठा के लिए इतने भीषण दंड के बारे में सुनकर उनका कलेजा मुंह को आ गया था । अपनी सखि के दुख को तो वे दूर नहीं कर सकती थीं किन्तु उसके पास बैठकर उसे हलका अवश्य कर सकती थीं । इसलिए वे सब एकराय होकर राजप्रासाद के अंत:पुर में आ गईं ।

उन सखियों को देखकर शर्मिष्ठा की आंखें भर आईं । सखियों ने शर्मिष्ठा को अपने गले से लगा लिया और सब रोने लगीं । सुवर्णा कहने लगी "देवयानी तो बहुत ही बेकार निकली । उसने ऐसी सजा सुनाई है जिसका कोई उदाहरण इतिहास में नहीं है अब तक । अपनी सखि के साथ ऐसा भी कोई करता है क्या" ?  "मुझे तो वह पहले भी अच्छी नहीं लगती थी । अब तो वह फूटी आंख भी नहीं सुहाती है कुलच्छनी कहीं की । वह तो नागिन निकली नागिन" ! सुनयना की आंखों में क्रोध था ।  "उसके मन में राजकुमारी के लिए सदा ही ईर्ष्या रही है । वह पहले प्रकट नहीं हुई थी , अब प्रकट हो गई है । लेकिन उसका मन इतना काला होगा, यह नहीं सोचा था" । विजया बोली ।  "बड़ी धूर्त निकली देवयानी । स्वयं तो महारानी बन गई और हमारी प्यारी सखि को अपनी दासी बन जाने का आदेश दे दिया जैसे कि वह ही राज्य कर रही हो । यदि वह सचमुच राज्य कर रही होती तो न जाने क्या कर बैठती" ? सुमंगला बड़बड़ाने लगी ।

सारी सखियां सुमंगला की ओर देखने लगीं । सबकी आंखों में एक ही प्रश्न था "क्या अनाप-शनाप बोल रही है ये । देवयानी को महारानी क्यों कह रही है ये" ?  "ऐसे मेरी ओर क्यों देख रही हैं आप सब ? मैंने कुछ गलत कह दिया है क्या ? देवयानी अब महारानी बन गई है, क्या तुम्हें पता नहीं है" ?  सब सखियों ने चौंककर सुमंगला की ओर देखा "क्या कह रही हो तुम ? देवयानी महारानी कैसे बन सकती है" ? सबके मुंह से एक साथ निकला ।  उनकी बातों से सुमंगला को हंसी आ गई । "अरे पगलियो, कोई लड़की महारानी कब बनती है" ? उसने उनकी ओर एक प्रश्न उछाल दिया और मुस्कुराकर जवाब का इंतजार करने लगी ।  सब सखियों ने एक दूसरे की ओर देखा और सब सखियां आंखों ही आंखों में कहने लगी "इतना बचकाना प्रश्न कैसे पूछ सकती है सुमंगला" । सब आंखों ही आंखों में हंसने लगीं । इस पर सुमंगला चिढ गई ।  "मुझे देखकर हंस क्यों रही हो तुम लोग ? मैं कोई विक्षिप्त नहीं हूं, इसलिए मुझसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है । यदि तुम में से किसी ने भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो मैं समझूंगी कि तुम सब विक्षिप्त हो गई हो" । अब सुमंगला के मुख पर फिर से मुस्कान आ गई ।

शर्मिष्ठा भी अपना शोक भूलकर उनकी बातों में रस लेने लगी । जब किसी ने सुमंगला की बात का जवाब नहीं दिया तो शर्मिष्ठा कहने लगी "अरे सुमंगले , सब जानते हैं कि महाराज की पत्नी महारानी होती है, इसमें नया क्या है" ?  "मैंने कब कहा कि इसमें कुछ नया है । मैं भी यही समझाने की कोशिश कर रही हूं कि देवयानी ने किसी सम्राट को अपना पति चुन लिया है । अब बोलो, वह महारानी हुई या नहीं" ? सुमंगला के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी । सुमंगला की बात सुनकर सभी सहेलियों के मुंह से एक साथ निकला "क्या" ?  "अरे भोली सखियो, कहां खोई रहती हो आजकल ? देवयानी को कुंए से किसी सम्राट ने निकाला था । बस, उसी सम्राट से कह दिया कि जाते कहां हो नाथ, मैं भी आपके साथ चलूंगी । अब मैं आपकी पत्नी हूं" ।  "अच्छा ! ऐसा कहा देवयानी ने ? फिर क्या हुआ" ?  "होना क्या था , वही हुआ जो हर सुन्दर युवती को देखकर होता है । सम्राट ने कुछ तर्क-वितर्क के पश्चात हां कह दी" ।  "अच्छा ? देवयानी जैसी अभिमानी लड़की के साथ विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करके किस सम्राट ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली" ? सबके मुंह से एक साथ निकला ।  "हमारी प्रिय राजकुमारी के चहेते सम्राट ययाति के अतिरिक्त और कौन हो सकता है" ?  "क्या" ? एक बार फिर से एक साथ कहा सबने । शर्मिष्ठा का चेहरा निस्तेज हो गया ।

श्री हरि  24.8.23

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